ज़िंदगी के रंग- 186

“You have to keep breaking your heart until it opens.”
― Rumi

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चुभते, बेलगाम,  नुकीले आघातों से टूटना,

दस्तुर-ए- ज़िदंगी है। 

पर किसी को तोङना क़सूर है।

दूसरों को तोड़ने की कोशिश

वही करते हैं, जो ख़ुद टूटे रहते हैं.

इसलिये हौसला हारे बिना 

लगे रहना, आगाज-ए- जीत है।

63 thoughts on “ज़िंदगी के रंग- 186

  1. सुंदर लिखा जी👌,आज इंसान दूसरे की लकीर को मिटाकर ,अपनी लकीर को बड़ा बनाने में लगा है।

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    1. आपका उदाहरण देने का तरीक़ा मुझे अच्छा लगा –
      दूसरे की लकीर को मिटाकर ,अपनी लकीर को बड़ा बनाना
      पर यह हो नकारात्मक approach है.

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      1. धन्यवाद🙏जी,बात तो मानवता की करेंगे परन्तु कर्म वैसे नहीं, मुह में राम बगल में छूरी वाली बात है जी

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