नब्ज़

कभी लगता है सागर के

लहरों की चादर ओढ़ लें.

कभी चाँदनी का, कभी कोहरे का,

कभी सूरज की रोशनी का .

कभी लगता है चाँद की चाँदी सी

चाँदनी में घुलमिल जायें.

खो जायें कहीं इस बेचैन मंज़र में…

कहीं तो शीतलता, ठण्ड

या चैन मिल जाए.

जब डूबती नब्ज़ का संदेश हिला दे.