दिल को चीर देने वाली हक़ीक़त है ये रेखा जी । भरोसा करने वाले सपने कांच के बने होते हैं जबकि दुनियावी हक़ीक़त की ज़मीन पथरीली होती है । उस हक़ीक़ी पथरीली ज़मीन से टकरा कर भरोसे की डोर भी टूटती है और शीशे से बने सपने भी ।और उस टूटन से उठने वाला दर्द जानलेवा होता है रेखा जी । मुकेश जी का गाया हुआ अमर गीत इसी दर्दीली सच्चाई को बयां करता है :
दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा
आपने बिलकुल सही कहा. हम सब यह जानते है कि हक़ीक़त पथरीली होती है, फिर भी ….
सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक अपने ऊपर गुज़रता नहीं है . तब तक हम इसे ठीक से समझ नहीं पाते.
मुकेश जी का गीत सच्चाई के क़रीब है.
आपका आभार .
वाह क्या बात है, सुंदर
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शुक्रिया .
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Indeed the thread of trust makes up for a strange experience. It’s volatile sometimes.
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Yes, I agree with you Samayak.
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दिल को चीर देने वाली हक़ीक़त है ये रेखा जी । भरोसा करने वाले सपने कांच के बने होते हैं जबकि दुनियावी हक़ीक़त की ज़मीन पथरीली होती है । उस हक़ीक़ी पथरीली ज़मीन से टकरा कर भरोसे की डोर भी टूटती है और शीशे से बने सपने भी ।और उस टूटन से उठने वाला दर्द जानलेवा होता है रेखा जी । मुकेश जी का गाया हुआ अमर गीत इसी दर्दीली सच्चाई को बयां करता है :
दोस्त दोस्त ना रहा, प्यार प्यार ना रहा
ज़िंदगी हमें तेरा ऐतबार ना रहा
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आपने बिलकुल सही कहा. हम सब यह जानते है कि हक़ीक़त पथरीली होती है, फिर भी ….
सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक अपने ऊपर गुज़रता नहीं है . तब तक हम इसे ठीक से समझ नहीं पाते.
मुकेश जी का गीत सच्चाई के क़रीब है.
आपका आभार .
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बिल्कुल सही कहा🙏😊
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आभार पसंद करने के लिए.
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