हबाब….बुलबुला…

गुस्ताखियाँ, बे-अदबी छोड़,

अदब से पेश आओ

मिट्टी की इस काया से.

कौन जाने क्षणभंगुर

ज़िंदगी का हबाब….बुलबुला…

कब हवा के झोंके में खो जाए .

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