जब कभी थोड़ा सा भी ठेस लगता है,
हर शख़्स के ज़बान और व्यवहार से ,
वही झलकता और छलकता है,
जो उसके अंदर भरा होता है.
धक्का लगने से
दूध के पात्र से दूध,
जाम से शराब और
गंगाजली के गोमुख से
गंगाजल हीं छलकेगा.
हमारे अंदर क्या है?
अपने अंदर क्या रखना है?
यह तो अपना-अपना ख़्याल है.
क्योंकि हर चोट के साथ वही
छलक कर सामने आएगा .
बिल्कुल सही कहा।
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आभार Subi.
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बिल्कुल ठीक कहा रेखा जी आपने ।
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शुक्रिया जितेंद्र जी.
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Well said.
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Thank you 😊 Rupam.
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क्या बात। क्या बात। बेहतरीन पढ़ने को मिला।👌👌
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आपकी प्रशंसा अच्छी लगी. आभार 😊
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स्वागत आपका।
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वाह……एक दम सही लिखा है…..आज तक कभी सोचा ना था😛
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शुक्रिया शैंकी. 😊
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Kiun itna jorr deti ho sharir aur buddhi par…asli baat uske paar hai….
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क्योंकि उसके पार / आध्यात्मिकया तक पहुँचने का ज़रिया शुद्ध -साफ़ मन और शरीर है.
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