सूरज तो ढलता है रोज़ .
फिर नियत समय पर निकल आता है.
हौसला ऐसा हीं होना चाहिए .
परेशानियाँ आयें,
उन्हें हौसले व हिम्मत के साथ झेल
और मज़बूती से खड़े हो जाए हम
हर दिन हर रोज़, सूरज जैसा.
वह तो ढलता है हर रोज़ …..
और एक नया सवेरा ले कर आता है.
कविता की अंतिम पंक्ति ब्लोगर गिरिजा के कमेंट से प्रेरित .
प्रेरक 👏👏बढिया dost ❤🙂
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आभार निमिष , 💐😊
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सही फरमाया आपने हर रात के सवेरा होता ही है
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बहुत अच्छी बात कही तुमने . मैंने इसे अपनी कविता में जोड़ दिया है. आशा है, तुम्हें भी पसंद आएगी .
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जी बहुत अच्छा लगा मुझे heartly thanks
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you are always welcome.
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सूरज रोज निकलता ढलता
कहाँ राह में थकता है,
जीवन भी सूरज के जैसा,
नित नव राहें गढ़ता है।
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बहुत ख़ूब !!! आपने तो जीवन का मूलमंत्र लिख दिया . आभार !!
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आपकी खूबसूरत पंक्तियाँ पढ़ी कुछ शब्द आये वो लिख दिया। धन्यवाद आपका।
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बड़ी सुंदर और सटीक पंक्तियाँ हैं. शुक्रिया .
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Great to read
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Thank you 😊 Rupam
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Hey nominated you for mystery blogger award 💞
https://wp.me/pb4Wwy-1K
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Thanks a lot Girija. 😊I request you to please nominate any new/ upcoming blogger instead of me.
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Ok i will do it rekha g
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Thanks dear
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Plz check your spam comments
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Sure. Just now I am responding through my phone, my laptop is not with me n to check spam I need laptop.
I will check n revert, once I go back home.
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Ok koi na
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😊
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हाँ रेखा जी । यही सबक याद रखने में इंसान की भलाई है कि :
रात भर का है मेहमां अंधेरा
किसके रोके रूका है सवेरा
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जी , बिलकुल . अपने हौसले को बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है .
आपका शुक्रिया जितेंद्र जी .
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