क्यों आज चुप है चाँद ?
ना जाने कितनी बातों का गवाह
कितने रातों का राज़दार
फ़लक से पल पल का हिसाब रखता,
कभी मुँडेर पर ,
कभी किसी शाख़-ए-गुल को चूमता,
गुलमोहर पर बिखरा कर अपनी चाँदनी अक्सर
थका हुआ मेरी बाहों में सो जाता था.
किस दर्द से बेसबब
चुप है चाँद ?
Very nice poem
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Thank you 😊
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