शाम हो चली थी
हवा थी कुछ नशीली सी .
तभी ……
पत्तों के झुरमुट के बीच से झाँका
धुआँ धुआँ सा, आँखों में नमी लिए शाम का सूरज
गुलाबी लाल किरणों के उजाले के साथ.
पूछा हमने – किसे खोज रहे हो ?
कुछ कहना है क्या ?
कहा उसने –
आज की शाम तो पूरे चाँद के नाम है .
उसी पूर्णिमा की चंद्रिका के इंतज़ार में हूँ .
जाते जाते एक झलक दिख जाए.
सदियों से यह क्रम चल रहा है.
एक दूसरे के आने के
इंतज़ार में जीना और फिर ढल जाना…….
Longing of sun and moon to see each other!
Such a beautiful idea and description!💕
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thank you dear.
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बहुत ही खूबसूरत रचना!
कमाल की पंक्तियाँ :
पत्तों के झुरमुट के बीच से झाँका
धुआँ धुआँ सा, आँखों में नमी लिए शाम का सूरज
सूरज और चन्द्रमा के सम्बन्ध का भी खूबसूरत वर्णन ! साधुवाद आपको!
वैसे बहुत समानता तो नहीं है , पर मेरी एक कविता में ‘अँधेरी रात ‘ चाँद के मध्य का वार्तालाप है | समय मिले तो जरूर पढ़ें :
https://rkkblog1951.wordpress.com/2018/10/15/अँधेरी-रात-और-चाँद
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बहुत आभार आपका पढ़ने और प्रशंसा के लिए.
Link share करने के लिए शुक्रिया.
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प्रेम की ऐसी सुन्दर अभिव्यक्ति ! हृदय गदगद हो गया 🌾
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मुझे सूर्य और चाँद का आना जाना कुछ ऐसा हीं लगता है. जिसने प्यार और इंतज़ार हो.
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बहुत ख़ूब रेखा जी ! बहुत सुंदर !
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बहुत आभार आपका .
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