ज़िंदगी के रंग – 161

ज़िंदगी भी कुछ अजीब अजीब सी है।

रोज़ नए रंग दिखाती है।

कल्पना को हक़ीक़त बनते बहुत बार देखा होगा।

हमने तो हक़ीक़त को कल्पना कहते भी सुना है !!

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