चुनाव का मौसम आते राजनीति
गलियरों में एक खेल ज़ोरों पर है।
एक दूसरे पर ताने कसते, व्यंग,
टीका–टिप्पणी करते…..
धर्म, पार्टी, राजनीतिक आधार पर
तंज कसते, छिंटाकशी करते बड़े लोगों का खेल.
जो बच्चों जैसे लग रहे हैं.
जनता भी बिना सोचे समझे
इस खेल को खेलने लगी है.
अब इंतज़ार यह है कि ये लोग कब बड़े होंगे .
तब तो हम,
तय करेगे कि– हम वोट किसे दें !!!!
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Thank you 😊
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🙏
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So true, social medai ke zamane me influence kanra aur asan ho gya hai..sab ek dusre ki khichai karte hai ,aise mein sach mein samajh nahi aata ki vote kisko de..
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Han,, और जनता बेचारी confuse होती रहती है – सच्चा कौन झूठा कौन यह सोचती रहती है .
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sahi mein
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लोगों को आपस में झगड़ते देखा है नेताओं के चक्कर में और आगे चल कर ये दलबदलू नेता बात बदल लेते है .
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ha maine bhi ye dekha hai 😃 bharosa nai kar sakte
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तो फिर देश कौन सम्भालेगा ? वोट किसे दे? यही तो नहीं समझ आता .
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thank you ,
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चीज़ों को देखने का एक अलग दृष्टिकोण…बढ़िया
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नीरज , तुम्हें नहीं लगता कि राजनीतिज्ञों, उच्च ओहदे पर बैठे लोगों को हल्की , ओछी, ग़लत भाषा का इस्तेमाल। नहीं करना चाहिए , अगर वे opposition के लिए statement दे रहे हो तब भी?
यह सब देख कर मुझे सचमुच अफ़सोस होता है. योग से आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर पहुँचने की बातें कहीं जाती है .
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आप बिल्कुल सही है रेखा जी ! भाषा में मर्यादा और संयम ना हो तो उस भाषा का असर किसी भी प्रकार से समाज के लिए लाभदायक तो नहीं हीं है
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हाँ. बिलकुल. कुछ तो mental level होना चाहिए . अच्छा लगा तुमने अपने विचार share किए .
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“तंज कसते, छिंटाकशी करते बड़े लोगों का खेल.
जो बच्चों जैसे लग रहे हैं……
अब इंतज़ार यह है कि ये लोग कब बड़े होंगे .
तब तो हम,
तय करेगे कि– हम वोट किसे दें !!!!
– Beautifully penned!
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Thank you 😊
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