क्यों करती हो तुम ऐसा ज़िंदगी ?
अब तुम्हारी यह लुका छिपी रास नहीं आती .
कभी कभी लगता है हार चुके हैं ज़िंदगी से ,
तभी राहत की ठंडी बयार आती है
किसी अनदेखे वातायन …..झरोखे से .
कोई अनजानी वीथिका राह बन जाती है.
वातायन – झरोखा , खिड़की .
वीथिका – रास्ता , गली .
ज़िन्दगी जिन्दादिली का दूसरा नाम है। मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। ज़िन्दगी से शिकवा न करो यारों
धूप छाँव तो आंख मिचौली किया करते हैं।
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बहुत ख़ूब . प्रेरक पंक्तियों के लिए शुक्रिया .
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धन्यवाद
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हां ज़िंदगी की लूका छिपी भयभीत भी करी है,निराश भी करती है और आस भी देती है लेकिन कभी कभी ये लूका छिपी असह्य भी हो जाती है I बहरहाल, एक सुंदर रचना !
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बिलकुल सही नीरज . ज़िंदगीकुछ ऐसी हीं होती है . शुक्रिया.
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