आज सौदागरों और सौदागरी की ही तो पूछ है रेखा जी । जज़्बाती लोगों को तो इमोशनल फूल कहकर उनका मज़ाक ही उड़ाया जाता है । बेचने में जो माहिर है, उसकी कद्र है; उसकी नहीं जो जज़्बात के नाम पर बेमोल बिक जाए ।
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल का पहला ही शेर है :
लोग मतलब में दिवाने हो गये, कुछ ज़ियादा ही सयाने हो गये;
हाल उसका मुझसे अब क्या पूछिये. उसको देखे तो ज़माने हो गये
क्या बात।बिल्कुल सही कहा।👌👌
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बहुत शुक्रिया .
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सच्ची बात
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शुक्रिया दीप 😊
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कुछ नया पोस्ट किया क्या तुम ने ?
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नहीं।
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क्यों ?
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कुछ ही देर में करता हूँ बना रहा हूँ।
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😊ok
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कर दी पोस्ट
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ठीक है.
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आज सौदागरों और सौदागरी की ही तो पूछ है रेखा जी । जज़्बाती लोगों को तो इमोशनल फूल कहकर उनका मज़ाक ही उड़ाया जाता है । बेचने में जो माहिर है, उसकी कद्र है; उसकी नहीं जो जज़्बात के नाम पर बेमोल बिक जाए ।
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल का पहला ही शेर है :
लोग मतलब में दिवाने हो गये, कुछ ज़ियादा ही सयाने हो गये;
हाल उसका मुझसे अब क्या पूछिये. उसको देखे तो ज़माने हो गये
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बिलकुल सही लिखाहै आपने। thank you Jitendra ji.
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