साँसे चले …समय गुजरता रहे बस …..
क्या यही है ज़िंदगी?
ना मक़सद …. ना ख़्वाब ……
हसीन तोहफ़ा है यह ज़िंदगी.
थोड़ी तमन्ना, अभिलाषा, लालसा
लक्ष्य…. मकसद मिला कर
गुनगुनाइये…..
राहें खुलती जायेंगीं।
साँसे चले …समय गुजरता रहे बस …..
क्या यही है ज़िंदगी?
ना मक़सद …. ना ख़्वाब ……
हसीन तोहफ़ा है यह ज़िंदगी.
थोड़ी तमन्ना, अभिलाषा, लालसा
लक्ष्य…. मकसद मिला कर
गुनगुनाइये…..
राहें खुलती जायेंगीं।
Reblogged this on tabletkitabesi.
LikeLiked by 1 person
Thank you 😊
LikeLike
बिलकुल ठीक बात कही है रेखा जी आपने । फ़िल्म ‘रॉक ऑन’ का गीत याद दिला दिया आपने :
आँखों में जिसके कोई तो ख़्वाब है
ख़ुश है वही जो थोड़ा बेताब है
ज़िन्दगी में कोई आरज़ू कीजिये
फिर देखिये
होठों पे जिसके कोई तो गीत है
वो हारे भी तो उसकी ही जीत है
दिल में जो गीत है, गुनगुना लीजिये
फिर देखिये
यादों में जिसके किसी का नाम है
सपनों के जैसी उसकी हर शाम है
कोई तो हो जिसे अपना दिल दीजिये
फिर देखिये
ख़्वाब बुनिये ज़रा
गीत सुनिये ज़रा
फूल चुनिये ज़रा
फिर देखिये
LikeLike
बहुत ख़ूबसूरत गीत है .
सचमुच अद्भुत साम्य है मेरी कविता और इस गीत में. आपकी जानकारी व याददाश्त भी प्रशंसनीय है.
बहुत आभार जितेंद्र जी .
LikeLiked by 1 person
वाह।हौसला बढ़ाती पंक्तियाँ।बेहतरीन लेखन।👌👌
LikeLiked by 1 person
बहुत शुक्रिया मधुसूदन😊
LikeLiked by 1 person
Reblogged this on The REKHA SAHAY Corner!.
LikeLike