रिश्ते

झुक कर रिश्ते निभाते-निभाते एक बात समझ आई,
कभी रुक कर सामनेवाले की नज़रें में देखना चाहिये।
उसकी सच्चाई भी परखनी चाहिये।
वरना दिल कभी माफ नहीं करेगा
आँखें बंद कर झुकने अौर भरोसा करने के लिये।

24 thoughts on “रिश्ते

  1. आपका संदेश सर्वथा ग्राह्य है रेखा जी । सामने वाले की सच्चाई को परखे बिना किसी कच्चे-पक्के रिश्ते को निभाते जाना अपने आपको धोखा देना ही है । और अगर हम अपने ही दिल को धोखा देंगे तो दिल हमें कैसे माफ़ करेगा ? हालांकि दिलों के सौदे नफ़ा-नुकसान देखकर नहीं किए जा सकते लेकिन सच्चे दिल का सौदा तो सच्चे दिल से ही होना चाहिए, किसी झूठे दिल से नहीं ।

    Like

    1. आभार जितेन्द्र जी ! आपकी बातें हमेशा की तरह बङी सुलझी हुईं हैं।

      मैंनें बहुत बार महसूस किया है कि हमारा दिल अक्सर हमें सही-गलत की
      चेतावनी देता है पर हम उसे अनसुनी करते हैं।

      Liked by 1 person

Leave a comment