MP village infamous for foeticide to marry off daughter after 40 yearsINDIA Updated: Feb 26, 2017 10:33 IST
Hindustan Times, Bhind
After 40 years, Gumara village in Bhind district of Madhya Pradesh will witness the marriage of a girl born there.The long wait is due to the cruel fact that the villagers did not allow a girl child to survive as they either killed it in the womb or soon after the birth.
विनीता सहाय गौर से कटघरे मे खड़े राम नरेश को देख रही थीं। पर उन्हे याद नहीं आ रहा था, इसे कहा देखा है? साफ रंग, बाल खिचड़ी और भोले चेहरे पर उम्र की थकान थी। साथ ही चेहरे पर उदासी की लकीरे थीं।वह कटघरे मे अपराधी की हैसियत से खड़ा था। वह आत्मविश्वासविहीन था।
लग रहा था जैसे उसे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं था। वह जैसे अपना बचाव करना ही नहीं चाहता था।कंधे झुके थे। शरीर कमजोर था। वह एक गरीब और निरीह व्यक्ति था। लगता था जैसे बिना सुने और समझे हर गुनाह कबूल कर रहा था। ऐसा अपराधी तो उन्होंने आज तक नहीं देखा था। उसकी पथराई आखों मे अजीब सा सूनापन था, जैसे वे निर्जीव हों।
लगता था वह जानबूझ कर मौत की ओर कदम बढ़ा रहा था। जज़ साहिबा को लग रहा था- यह इंसान इतना निरीह है। यह किसी का कातिल नहीं हो सकता है। क्या इसे किसी ने झूठे केस मे फँसा दिया है? या पैसों के लालच मे झूठी गवाही दे रहा है?नीचे के कोर्ट से उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई थी।
विनीता सहाय ने जज़ बनने के समय मन ही मन निर्णय किया था कि कभी किसी निर्दोष और लाचार को सज़ा नहीं होने देंगी। झूठी गवाही से उन्हे सख़्त नफरत थी। अगर राम नरेश का व्यवहार ऐसा न होता तो शायद जज़ विनीता सहाय ने उसपर ध्यान भी न दिया होता।
दिन भर मे न-जाने कितने केस निपटाने होते है। ढेरों जजों, अपराधियों, गवाहों और वकीलों के भीड़ मे उनका समय कटता था। पर ऐसा दयनीय कातिल नहीं देखा था। कातिलों की आँखों मे दिखनेवाला गिल्ट या आक्रोश कुछ भी तो नज़र नहीं आ रहा था। विनीता सहाय अतीत को टटोलने लगी। आखिर कौन है यह?कुछ याद नहीं आ रहा था।
विनीता सहाय शहर की जानी-मानी सम्माननीय हस्ती थीं। गोरा रंग, छोटी पर सुडौल नासिका, ऊँचा कद, बड़ी-बड़ी आखेँ और आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व वाली विनीता सहाय अपने सही और निर्भीक फैसलो के लिए जानी जाती थीं। उम्र के साथ सफ़ेद होते बालों ने उन्हें और प्रभावशाली बना दिया था। उनकी बुद्धिदीप्त,चमकदार आँखें एक नज़र में ही अपराधी को पहचान जाती थीं। उन्हे सुप्रींम कोर्ट की पहली महिला जज़ होने का भी गौरव प्राप्त था। उनके न्याय-प्रिय फैसलों की चर्चा होती रहती थी।
पुरुषो के एकछत्र कोर्ट मे अपना करियर बनाने मे उन्हें बहुत तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था। सबसे पहला युद्ध तो उन्हें अपने परिवार से लड़ना पड़ा था। वकालत करने की बात सुनकर घर मेँ तो जैसे भूचाल आ गया। माँ और बाबूजी से नाराजगी की तो उम्मीद थी, पर उन्हें अपने बड़े भाई की नाराजगी अजीब लगी। उन्हें पूरी आशा थी कि महिलाओं के हितों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले भैया तो उनका साथ जरूर देंगे। पर उन्हों ने ही सबसे ज्यादा हँगामा मचाया था।
तब विनी को सबसे हैरानी हुई, जब उम्र से लड़ती बूढ़ी दादी ने उसका साथ दिया। दादी उसे बड़े लाड़ से ‘नन्ही परी’ बुलाती थी। विनी रात मेँ दादी के पास ही सोती थी। अक्सर दादी कहानियां सुनाती थी। उस रात दादी ने कहानी तो नहीं सुनाई परगुरु मंत्र जरूर दिया। दादी ने रात के अंधेरे मे विनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा- मेरी नन्ही परी, तु शिवाजी की तरह गरम भोजन बीच थाल से खाने की कोशिश कर रही है। जब भोजन बहुत गरम हो तो किनारे से फूक-फूक कर खाना चाहिए।
तु सभी को पहले अपनी एल एल बी की पढाई के लिए राजी कर। न कि अपनी वकालत के लिए। ईश्वर ने चाहा तो तेरी कामना जरूर पूरी होगी। विनी ने लाड़ से दादी के गले मे बाँहे डाल दी। फिर उसने दादी से पूछा- दादी तुम इतना मॉडर्न कैसे हो गई? दादी रोज़ सोते समय अपने नकली दाँतो को पानी के कटोरे मे रख देती थी। तब उनके गाल बिलकुल पिचक जाते थे और चेहरा झुरियों से भर जाता था।
विनी ने देखा दादी की झुरियों भरे चेहरेपर विषाद की रेखाएँ उभर आईं और वे बोल पडी-बिटिया, औरतों के साथ बड़ा अन्याय होता है। तु उनके साथ न्याय करेगी यह मुझे पता है। जज बन कर तेरे हाथों मेँ परियों वाली जादू की छड़ी भी तो आ जाएगी न। अपनी अनपढ़ दादी की ज्ञान भरी बाते सुन कर विनी हैरान थी। दादी के दिये गुरु मंत्र पर अमल करते हुए विनी ने वकालत की पढ़ाई पूरी कर ली। तब उसे लगा – अब तो मंज़िल करीब है।
पर तभी न जाने कहा से एक नई मुसीबत सामने आ गई। बाबूजी के पुराने मित्र शरण काका ने आ कर खबर दी। उनके किसी रिश्तेदार का पुत्र शहर मे ऊँचे पद पर तबादला हो कर आया है। क्वाटर मिलने तक उनके पास ही रह रहा है। होनहार लड़का है। परिवार भी अच्छा है। विनी के विवाह के लिए बड़ा उपयुक्त वर है। उसने विनी को शरण काका के घर आते-जाते देखा है। बातों से लगता है कि विनी उसे पसंद है। उसके माता-पिता भी कुछ दिनों के लिए आनेवाले है।
शरण काका रोज़ सुबह,एक हाथ मे छड़ी और दूसरे हाथ मे धोती थाम कर टहलने निकलते थे। अक्सर टहलना पूरा कर उसके घर आ जाते थे। सुबह की चाय के समय उनका आना विनी को हमेशा बड़ा अच्छा लगता था। वे दुनियां भर की कहानियां सुनाते। बहुत सी समझदारी की बातें समझाते।
पर आज़ विनी को उनका आना अखर गया। पढ़ाई पूरी हुई नहीं कि शादी की बात छेड़ दी। विनी की आँखें भर आईं। तभी शरण काका ने उसे पुकारा- ‘बिटिया, मेरे साथ मेरे घर तक चल। जरा यह तिलकुट का पैकेट घर तक पहुचा दे। हाथों मेँ बड़ा दर्द रहता है। तेरी माँ का दिया यह पैकेट उठाना भी भारी लग रहाहै।
बरसो पहले भाईदूज के दिन माँ को उदास देख कर उन्हों ने बाबूजी से पूछा था। भाई न होने का गम माँ को ही नही, बल्कि नाना-नानी को भी था। विनी अक्सर सोचती थी कि क्या एक बेटा होना इतना ज़रूरी है? उस भाईदूज से ही शरण काका ने माँ को मुहबोली बहन बना लिया था। माँ भी बहन के रिश्ते को निभाती, हर तीज त्योहार मे उन्हें कुछ न कुछ भेजती रहती थी। आज का तिलकुट मकर संक्रांति का एडवांस उपहार था। अक्सर काका कहते- विनी की शादी मे मामा का नेग तो मुझे ही निभाना है।
शरण काका और काकी मिनी दीदी की शादी के बाद जब भी अकेलापन महसूस करते , तब उसे बुला लेते थे। अक्सर वे अम्मा- बाबूजी से कहते- मिनी और विनी दोनों मेरी बेटियां हैं। देखो दोनों का नाम भी कितने मिलते-जुलते है। जैसे सगी बहनों के नाम हो। शरण काका भी अजीब है। लोग बेटी के नाम से घबराते है। और काका का दिल ऐसा है, दूसरे की बेटी को भी अपना मानते है।
मिनी दीदी के शादी के समय विनी अपने परीक्षा मे व्यस्त थी। काकी उसके परीक्षा विभाग को रोज़ कोसती रहती। दीदी के हल्दी के एक दिन पहले तक परीक्षा थी। काकी कहती रहती थी- विनी को फुर्सत होता तो मेरा सारा काम संभाल लेती। ये कालेज वालों परीक्षा ले-ले कर लड़की की जान ले लेंगे। शांत और मृदुभाषी विनी उनकी लाड़ली थी।
वे हमेशा कहती रहती- ईश्वर ने विनी बिटिया को सूरत और सीरत दोनों दिया है। आखरी पेपर दे कर विनी जल्दी-जल्दी दीदी के पास जा पहुची। उसे देखते काकी की तो जैसे जान मे जान आ गई। दीदी के सभी कामों की ज़िम्मेवारी उसे सौप कर काकी को बड़ी राहत महसूस हो रही थी। उन्होंने विनी के घर फोन कर ऐलान कर दिया कि विनी अब मिनी के विदाई के बाद ही घर वापस जाएगी।
शाम मे विनी, दीदी के साथ बैठ कर उनका बक्सा ठीक कर रही थी, तब उसे ध्यान आया कि दीदी ने कॉस्मेटिक्स तो ख़रीदा ही नहीं है। मेहँदी की भी व्यवस्था नहीं है। वह काकी से बता कर भागी भागी बाज़ार से सारी ख़रीदारी कर लाई। विनी ने रात मे देर तक बैठ कर दीदी को मेहँदी लगाई। मेहँदी लगा कर जब हाथ धोने उठी तो उसे अपनी चप्पलें मिली ही नहीं। शायद किसी और ने पहन लिया होगा।
शादी के घर मे तो यह सब होता ही रहता है। घर मेहमानों से भरा था। बरामदे मे उसे किसी की चप्पल नज़र आई। वह उसे ही पहन कर बाथरूम की ओर बढ़ गई। रात मे वह दीदी के बगल मे रज़ाई मे दुबक गई। न जाने कब बाते करते-करते उसे नींद आ गई।
सुबह, जब वह गहरी नींद मे थी। किसी उसकी चोटी खींच कर झकझोर दिया।कोई तेज़ आवाज़ मे बोल रहा था- अच्छा, मिनी दीदी, तुम ने मेरी चप्पलें गायब की थी। हैरान विनी ने चेहरे पर से रज़ाई हटा कर अपरिचित चेहरे को देखा। उसकी आँखें अभी भी नींद से भरी थीं।
तभी मिनी दीदी खिलखिलाती हुई पीछे से आ गई। अतुल, यह विनी है। सहाय काका की बेटी और विनी यह अतुल है। मेरे छोटे चाचा का बेटा। हर समय हवा के घोड़े पर सवार रहता है। छोटे चाचा की तबीयत ठीक नहीं है। इसलिए छोटे चाचा और चाची नहीं आ सके तो उन्हों ने अतुल को भेज दिया। अतुल उसे निहारता रहा, फिर झेंपता हुआ बोला- “मुझे लगा, दीदी, तुम सो रही हो। दरअसल, मैं रात से ही अपनी चप्पलें खोज रहा था।“
विनी का को बड़ा गुस्सा आया। उसने दीदी से कहा- मेरी भी तो चप्पलें खो गई हैं। उस समय मुझे जो चप्पल नज़र आई मैं ने पहन लिया। मैंने इनकी चप्पलें पहनी है,किसी का खून तो नहीं किया । सुबह-सुबह नींद खराब कर दी। इतने ज़ोरों से झकझोरा है। सारी पीठ दर्द हो रही है। गुस्से मेँ वह मुंह तक रज़ाई खींच कर सो गई। अतुल हैरानी से देखता रह गया। फिर धीरे से दीदी से कहा- बाप रे, यह तो वकीलों की तरह जिरह करती है।
काकी एक बड़ा सा पैकेट ले कर विनी के पास पहुचीं और पूछने लगी – बिटिया देख मेरी साड़ी कैसी है? पीली चुनरी साड़ी पर लाल पाड़ बड़ी खूबसूरत लग रही थी। विनी हुलस कर बोल पड़ी- बड़ी सुंदर साड़ी है। पर काकी इसमे फॉल तो लगा ही नहीं है। हद करती हो काकी। सारी तैयारी कर ली हो और तुम्हारी ही साड़ी तैयार नहीं है। दो मै जल्दी से फॉल लगा देती हूँ।
विनी दीदी के पलंग पर बैठ कर फॉल लगाने मे मसगुल हो गई। काकी भी पलंग पर पैरों को ऊपर कर बैठ गई और अपने हाथों से अपने पैरों को दबाने लगी। विनी ने पूछा- काकी तुम्हारे पैर दबा दूँ क्या? वे बोलीं – बिटिया, एक साथ तू कितने काम करेगी? देख ना पूरे काम पड़े है और अभी से मैं थक गई हूँ। साँवली -सलोनी काकी के पैर उनकी गोल-मटोल काया को संभालते हुए थक जाए, यह स्वाभाविक ही है। छोटे कद की काकी के लालट पर बड़ी सी गोल लाल बिंदी विनी को बड़ी प्यारी लगती थी। विनी को काकी भी उसी बिंदी जैसी गोल-मटोल लगती थीं।
तभी मिनी दीदी की चुनरी मे गोटा और किरण लगा कर छोटी बुआ आ पहुचीं। देखो भाभी, बड़ी सुंदर बनी है चुनरी। फैला कर देखो ना- छोटी बुआ कहने लगी। पूरे पलंग पर सामान बिखरा था। काकी ने विनी की ओर इशारा करते हुई कहा- इसके ऊपर ही डाल कर दिखाओ छोटी मईयां।
सिर झुकाये फॉल लगाती विनी के ऊपर लाल चुनरी बुआ ने फैला दिया। चुनरी सचमुच बड़ी सुंदर बनी थी। काकी बोल पड़ी- देख तो विनी पर कितना खिल रहा है यह रंग। विनी की नज़रें अपने-आप ही सामने रखे ड्रेसिंग टेबल के शीशे मे दिख रहे अपने चेहरे पर पड़ी। उसका चेहरा गुलाबी पड़ गया। उसे अपना ही चेहरा बड़ा सलोना लगा।
तभी अचानक किसी ने उसके पीठ पर मुक्के जड़ दिये- “ तुम अभी से दुल्हन बन कर बैठ गई हो दीदी” अतुल की आवाज़ आई। वह सामने आ कर खड़ा हो गया। अपलक कुछ पल उसे देखता रह गया। विनी की आँखों मेँ आंसू आ गए थे। अचानक हुए मुक्केबाज़ी के हमले से सुई उसकी उंगली मे चुभ गई थी। उंगली के पोर पर खून की बूँद छलक आई थी।
अतुल बुरी तरह हड्बड़ा गया। बड़ी अम्मा, मैं पहचान नहीं पाया था। मुझे क्या मालूम था कि दीदी के बदले किसी और को दुल्हन बनने की जल्दी है। पर मुझ से गलती हो गई- वह काकी से बोल पड़ा। फिर विनी की ओर देख कर ना जाने कितनी बार सॉरी-सॉरी बोलता चला गया। तब तक मिनी दीदी भी आ गई थी।
विनी की आँखों मेँ आंसू देख कर सारा माजरा समझ कर, उसे बहलाते हुए बोली- “अतुल, तुम्हें इस बार सज़ा दी जाएगी।“ बता विनी इसे क्या सज़ा दी जाए? विनी ने पूछा- इनकी नज़रे कमजोर है क्या? अब इनसे कहो सभी के पैर दबाये। यह कह कर विनी साड़ी समेट कर, पैर पटकती हुई काकी के कमरे मे जा कर फॉल लगाने लगी।
अतुल सचमुच काकी के पैर दबाने लगा, और बोला- वाह! क्या बढ़िया फैसला है जज़ साहिबा का। बड़ी अम्मा, देखो मैं हुक्म का पालन कर रहा हूँ। “तू भी हर समय उसे क्यों परेशान करता रहता है अतुल?”-मिनी दीदी की आवाज़ विनी को सुनाई दी। दीदी, इस बार भी मेरी गलती नहीं थी- अतुल सफाई दे रहा था।
फॉल का काम पूरा कर विनी हल्दी के रस्म की तैयारी मेँ लगी थी। बड़े से थाल मे हल्दी मंडप मे रख रही थी। तभी मिनी दीदी ने उसे आवाज़ दी। विनी उनके कमरे मे पहुचीं। दीदी के हाथों मे बड़े सुंदर झुमके थे। दीदी ने झुमके दिखाते हुए पूछा- ये कैसे है विनी? मैं तेरे लिए लाई हूँ। आज पहन लेना। मैं ये सब नही पहनती दीदी- विनी झल्ला उठी। सभी को मालूम है कि विनी को गहनों से बिलकुल लगाव नहीं है। फिर दीदी क्यों परेशान कर रही है? पर दीदी और काकी तो पीछे ही पड़ गई।
दीदी ने जबर्दस्ती उसके हाथों मेँ झुमके पकड़ा दिये। गुस्से मे विनी ने झुमके ड्रेसिंग टेबल पर पटक दिये। फिसलता हुआ झुमका फर्श पर गिरा और दरवाज़े तक चला गया। तुनकते हुए विनी तेज़ी से पलट कर बाहर जाने लगी। उसने ध्यान ही नहीं दिया था कि दरवाजे पर खड़ा अतुल ये सारी बातें सुन रहा था। तेज़ी से बाहर निकालने की कोशिश मे वह सीधे अतुल से जा टकराई। उसके दोनों हाथों में लगी हल्दी के छाप अतुल के सफ़ेद टी-शर्ट पर उभर आए।
वह हल्दी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी। पर हल्दी के दाग और भी फैलने लगे। अतुल ने उसकी दोनों कलाइयां पकड़ ली और बोल पड़ा- यह हल्दी का रंग जाने वाला नहीं है। ऐसे तो यह और फ़ैल जाएगा। आप रहने दीजिये। विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई।
बड़े धूम-धाम से दीदी की शादी हो गई। दीदी की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा। कुछ दिनों से अम्मा की तबियत ठीक नहीं चल रही थी। डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चेक-अप का सुझाव दिया था। मिनी दीदी के शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था। दीदी की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था।
***
एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दिया। विनी को देखने लड़केवाले अभी कुछ देर मे आना चाहते हैं। घर मे जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई। पर विनी बड़ी परेशान थी। ना-जाने किसके गले बांध दिया जाएगा?
उसके भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएगे। अम्मा उसे तैयार होने कह कर किचेन मे चली गईं। तभी मालूम हुआ कि लड़का और उसके परिवारवाले आ गए है। बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंग रूम मेँ बातें कर रहे थे। अम्मा उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उसके बाल संवारे। अपने अलमारी से झुमके निकाल कर दिये। विनी झुंझलाई बैठी रही।
अम्मा ने जबर्दस्ती उसके हाथों मे झुमके पकड़ा दिये। गुस्से मे विनी ने झुमके पटक दिये। एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंग रूम के दरवाजे तक चला गया। ड्राइंग-रूम उसके कमरे से लगा हुआ था।
परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं। विनी अम्मा के साथ नज़रे नीची किए हुए ड्राइंग-रूम मेँ जा पहुची। वह सोंच मे डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए। काकी ने उसे एक सोफ़े पर बैठा दिया। तभी बगल से किसी की ने धीरे से पूछा- आज किसका गुस्सा झुमके पर उतार रही थी? आश्चर्यचकित नज़रों से विनी ने ऊपर देखा। उसने फिर कहा- मैं ने कहा था न, हल्दी का रंग जाने वाला नहीं है। सामने अतुल बैठा था।
अतुल और उसके माता-पिता के जाने के बाद काका ने उसे बुलाया। बड़े बेमन से कुछ सोंचती हुई वह काका के साथ चलने लगी। गेट से बाहर निकलते ही काका ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- “विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूँ। बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है। मैंने अतुल को तेरे सपने के बारे मेँ बता दिया है। तू किसी तरह की चिंता मत कर। मुझ पर भरोसा कर बेटा।
काका ने ठीक कहा था। वह आज़ जहाँ पंहुची है। वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था। अतुल आज़ भी अक्सर मज़ाक मेँ कहते हैं –“मैं तो पहली भेंट मेँ ही जज़ साहिबा की योग्यता पहचान गया था।“ उसकी शादी मेँ सचमुच शरण काका ने मामा होने का दायित्व पूरे ईमानदारी से निभाया था। पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी। बचपन की आदत वह बादल नहीं पाई थी।
***
कोर्ट का कोलाहल विनीता सहाय को अतीत से बाहर खींच लाया। पर वे अभी भी सोच रही थीं – इसे कहाँ देखा है। दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी। राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे। वह एक भयानक कातिल था। उसने इकरारे जुर्म भी कर लिया था।
उसने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। एक सोची समझी साजिश के तहत उसने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर जंगल मे फेंक दिया था। वकील ने बताया कि राम नरेश का अपराधिक इतिहास है। वह एक क्रूर कातिल है।
पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था। पर सबूतों के आभाव मे छूट गया था। इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सज़ा दी जानी चाहिए। वकील ने पुराने केस की फाइल उनकी ओर बढ़ाई। फ़ाइल खोलते ही उनके नज़रों के सामने सब कुछ साफ हो गया। सारी बातें चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूमने लगी।
लगभग बाईस वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था। उसने अपनी दूध मुहीं बेटी की हत्या कर दी थी। तब विनीता सहाय वकील हुआ करती थी। ‘कन्या-भ्रूण-हत्या’ और ‘बालिका-हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे। माता-पिता और समाज द्वारा बेटे-बेटियों में किए जा रहे भेद-भाव उन्हें असह्य लगते थे।
तब विनीता सहाय ने रामनरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ी चोटी की ज़ोर लगा दी थी। उस गाँव मेँ अक्सर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था। इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी। लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ।
इस लिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था। आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था। विनीता सहाय ने मन ही मन सोचा- ‘काश, तभी इसे सज़ा मिली होती। इतना सीधा- सरल दिखने वाला व्यक्ति दो-दो कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सज़ा देंगी।
जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा- ‘क्या तुम्हें अपनी सफाई मे कुछ कहना है?’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग भरी मुस्कान खेलने लगी। कुछ पल चुप रहने के बाद उसने कहा – “हाँ हुज़ूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है। मैं आप लोगों जैसा पढ़ा- लिखा और समझदार तो नहीं हूँ। पता नहीं आपलोग मेरी बात समझेगें या नहीं। पर आप मुझे यह बताइये कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले। तब क्या उसे मार डालना अपराध है?”
मेरी बेटी को उसके पति ने दहेज के लिए जला दिया था। मरने से पहले मेरी बेटी ने अपना आखरी बयान दिया था, कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उसके पति ने जला दिया। पर वह पुलिस और कानून से बच निकला। इस लिए उसे मैंने अपने हाथों से सज़ा दिया। मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह का कोई अफसोस नहीं है।
उसका चेहरा मासूम लग रहा था। उसकी बूढ़ी आँखों मेँ आंसू चमक रहे थे, पर चेहरे पर संतोष झलक रहा था। वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ-“ हुज़ूर, क्या आपको याद है? आज़ से बाईस वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते मार डाला था, तब आप मुझे सज़ा दिलवाना चाहती थीं।
आपने तब मुझे बहुत भला-बुरा कहा था। आपने कहा था- बेटियां अनमोल होती हैं। उसे मार कर मैंने जघन्य पाप किया है।“
आप की बातों ने मेरी रातो की नींद और दिन का चैन ख़त्म कर दिया था। इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि ईश्वर ने मुझे भूल सुधारने के मौका दिया है। मैंने प्रयश्चित करना चाहा। उसका नाम मैंने परी रखा। बड़े जतन और लाड़ से मैंने उसे पाला।
अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया। वह मेरी जान थी। मैंने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा। मै हर दिन मन ही मन आपको आशीष देता कि आपने मुझे ‘पुत्री-सुख’ से वंचित होने से बचा लिया। मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी। मैंने उसकी शादी बड़े अरमानों से किया। अपनी सारी जमा-पूंजी लगा दी।
मित्रो और रिश्तेदारों से उधार ली। किसी तरह की कमी नहीं की। पर दुनिया ने उसके साथ वही किया जो मैंने बाईस साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था। उसे मार डाला। तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूँ? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस क्रूर दुनिया के दुखों और भेद-भाव को सहना नहीं पड़ा। जबकि छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है। ऐसे मेँ सज़ा किसे मिलनी चाहिए? मुझे सज़ा मिलनी चाहिए या इस समाज को?
अब आप बताइये कि बेटियोंको पाल पोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पल-पल तिल-तिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दे। कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफ़ों को झेलने से तों बच जाएगीं। मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है।
उन्हे जिंदगी के हर कदम पर दुख-दर्द झेलने पड़ते है। काश मैंने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते मार दिया होता। आप मुझे बताइये, क्या कहीं ऐसी दुनिया हैं जहाँ जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेद-भाव के एक सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं। पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूँ। क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि यह नतीजा देखने को मिले? या समाज हमेँ कमजोर होने की सज़ा दे रहा है? क्या सही है और क्या गलत, आप मुझे बताइये।
विनीता सहाय अवाक थी। मुक नज़रो से राम नरेश के लाचार –कमजोर चेहरे को देख रही थीं। उनके पास कोई जवाब नहीं था। पूरे कोर्ट मे सन्नाटा छा गया था। आज एक नया नज़रिया उनके सामने था? उन्होंने उसके फांसी की सज़ा को माफ करने की दया याचिका प्रेसिडेंट को भिजवा दिया।
अगले दिन अखबार मे विनीता सहाय के इस्तिफ़े की खबर छपी थी। उन्होंने वक्तव्य दिया था – इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है। जिससे समाज लड़कियों को समान अधिकार मिले। अन्यथा न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। गलत सामाजिक व्यवस्था और करप्शन न्याय को गुमराह करता है और लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा ख़त्म करता है। मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध मेँ न्यायधिश पद से इस्तीफा देती हूँ।
image from internet.
😦 😦 😦 😦 😦 😦 😦 😦
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That was a brilliant one Rekha!
Though i was quiet against Ram’s belief in the last few paras, but still it was a great story
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Thanks a lot for reading the story and sharing your views Aedit.
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बहुत ही मार्मिक कहानी.. अंदर तक हिला के रख देती है
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पता नहीँ विश्व गुरु कहलाने का दावा करने वाला हमारा देश कब लड़कियों को समान दर्जा देगा ? मुझे यह बात बहुत चुभती है
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मुझे भी.. मगर हम सब व्यक्तिगत स्तर पे अपनी अपनी लड़ाईयां लड़ सकते हैं बस.. आने वाली पीढ़ी के लिए एक अच्छा उदहारण पेश कर सकते है.. जरुरत बेटियों को बचाने की जितनी है उतनी ही बेटों को समझने की भी.. दोनों पक्षों को मिलकर दोनों पक्षों के बीच उभरी खाई को कम करना होगा तभी कुछ संभव है.. जिस गति से हम बढ़ रहे हैं लगता है कुछ पीढ़ियों बाद शायद ये संभव हो जाये
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आपकी बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं। इसके जिम्मेदार हम सभी हैं। किसी एक पर जिम्मेदारी डालना बेकार बेकार है। सभी की मानसिकता बदलना जरूरी है।
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rekha ji ..un berehem longon se ek sawal.. agar sirf ladke paida karne ki chah me ladkiyon ko maar denge .. to 25 saal baad apne ladke ki shaadi kya ladke se hi karvayenge ?? kyunki ladki bachegi hi nahi ..
aisa kar bhi liya fir to aur chinta hogi..unki vansh waise bhi nahi badegi…
pata nahi kya suddhar hoga unki soch ka ..
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हां आपकी बात बिल्कुल सही है. मुझे एक बात कभी नहीं समझ आती है कि भगवान की बनाई इस खूबसूरत रचना से इतनी नाराजगी क्यों? आपकी बात सही बात है, इस आधी आबादी को खत्म कर क्या बाकी आधी आबादी आगे बढ़े सकेगी ? पर तसल्ली है कि आज की जनरेशन के आप जैसे लोगों में जागरूकता है। यह देख कर खुशी होती है।
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kal kisne dekha hain ji..aaj main hu kal nahi .. par humare ache soch se kuch difference aa jaye logon ki soch me , yahi koshish rehti hain ..
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Aapki soch bahut achi hai. Kaash aur log bhi aise soch rakhe.
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मन को छूने वाली कहानी है ।समाज मे इस तरह की चीजें देखने को बहुत मिलती है ।मुझे ये समझ मे नहीं आता कोई अपनी अजन्मी बेटी को या अपनी पत्नी को दहेज के लिये मारकर अपनी अंतरात्मा का सामना कैसे करता होगा ।गलती सिर्फ पुरूष प्रधान समाज की ही नहीं महिलाओं की भी है ।
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बिलकुल सही कहा आपने. पर यह इस कहानी में जो दृष्टिकोण मैंने लिखा है , वह मुझसे किसी ने कहा था. और सच बताऊँ , मैं सिहर गई थी यह सुन कर.
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A mesmerizing story! Very very beautifully narrated.
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Thanks Savita.😊
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Heart touching.great
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Thanks Rashi.
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क्या कहीं ऐसी दुनिया हैं जहाँ जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेद-भाव के एक सुखद जीवन जी सकें?
आपकी कहानी ने हिर्दय को झकझोर दिया …….😢😢😢
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हां अजय यह सब बातें मुझे भी अंदर तक झकझोर जाती है और मैं अपने आप को लिखने से नहीं रोक पाती।
कहानी पढ़ने और अपने विचार बताने के लिए शुक्रिया
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दिल को छू लेने वाली कहानी……
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कहानी पढ़ने के लिये धन्यवाद गायत्री.
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Kfb ?
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Hi Charmi, I loved your blog specially the red rose one.
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this is really good (y)
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Thank you.😊
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I didn’t get the whole story because of the Hindi language but the little I got made me realise that girl child don’t seems to be valued like the male child and that is so sad.
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Yes , that is the essence of the story. Gender difference is really a sad part of our society.
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सारे किरदार आँखों के सामने नाच रहे हैं।
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😊😊
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मेरे आँखों के सामने वह सपना आज ऐसे है ,जैसे वास्तविकता हो.
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बहुत ही प्यारी और दिल को छूने वाली कहानी है ,इसे पढ़कर मन यह सोचने पर विवश हो गया कि ये परिस्थितियाँ कब बदलेगी ? कहने को तो आज भी नारी स्वतंत्र है परन्तु समाज के ठेकेदारों ने उसे स्वतंत्र होते हुए भी मानसिक रूप से परतंत्र बना रखा है | रेखा जी आपने इस कहानी के माध्यम से समाज को एक आइना दिखाया है उसके लिए धन्यवाद
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शुक्रिया शबनम,
समाज में बदलाव तो आ रहा है. पर अफ़सोस की बात है कि बदलाव की गति बहुत धीमी है. ना जाने नारी को सही सम्मान कब मिलेगा .
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बहुत प्यारी और दिल को छू लेने वाली कहानी है ,इसे पढ़कर मन यह सोचने पर विवश हो गया कि ये परिस्थितियाँ कब बदलेंगी ? कहने को तो आज की नारी स्वतंत्र है परन्तु समाज के ठेकेदारों ने उसे स्वतंत्र होते हुए भी मानसिक रूप से परतंत्र बना रखा है | रेखा जी आपने इस कहानी के माध्यम से समाज को एक आइना दिखाया है उसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया |
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शुक्रिया शबनम . तुमने सही कहा. काश समाज में जल्दी सुधार आए .
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