एक पत्थर ने पूछा शिवलिंग से।
तुम चिकने हो, सलोने हो इसलिए
पूजे जाते हो?
हमें तो ना कोई पूछता है। ना ही पूजता है।
शिवलिंग ने कहा- मैं भी तुम जैसा ही था।
नोकदार रुखड़ा, पत्थर का टुकड़ा।
पर मैंने अपने को छोड़ दिया
नदी के प्रवाह में, नियंता के सहारे।
दूसरों को चोट देने के बदले चोटें खाईं।
नर्मदा ने मुझे घिस – माँज कर ऐसा बनाया।
क्या तुम अपने को ऐसे को छोड़ सकोगे?
तब तुम भी शिव बन जाओगे, शिवलिंग कहलाओगे।
(ऐसी मान्यता है कि नर्मदा नदी का हर पाषाण शिवलिंग होता है या उनसे स्वाभाविक और उत्तम शिवलिंग बनते हैं। नर्मदा या रेवा नदी हमारे देश की 7 पवित्र नदियों में से एक है। नर्मदा नदी छत्तीसगढ़ में अमरकंटक मैं विंध्याचल गाड़ी श्रृंखला से निकलती है और आगे जाकर अरब सागर में विलीन हो जाती है। अमरकंटक में माता नर्मदा का मंदिर है । यह ऐसी एकमात्र नदी है जिस की परिक्रमा की जाती है यह उलटी दिशा में यानी पूरब से पश्चिम की ओर बहती है । इसे गंगा नदी से भी ज्यादा पवित्र माना जाता है । मान्यता है कि गंगा हर साल स्वयं गंगा दशहरा के दिन नर्मदा नदी के पास प्ले के लिए पहुंचती है ।यह एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। इस प्राचीन नदी की चर्चा रामायण, महाभारत , पुराणों और कालिदास के साहित्य में भी मिलता है।
हमारा जीवन भी ऐसा हीं है। जीवन के आघात, परेशनियाँ, दुःख-सुख हमें तराशतें हैं, हमें चमक प्रदान करते हैं ।
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